Parkinson Disease

पार्किंसन रोग केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र का एक ऐसा रोग है जिसमें रोगी के शरीर के अंग कंपन करते रहते हैं। पार्किंसन का आरम्भ आहिस्ता-आहिस्ता होता है। पता भी नहीं पड़ता कि कब लक्षण शुरू हुए। अनेक सप्ताहों व महीनों के बाद जब लक्षणों की तीव्रता बढ़ जाती है तब अहसास होता है कि कुछ गड़बड़ है। लेकिन घबराइए नहीं क्‍योंकि आयुर्वेदिक की मदद से पार्किंसंस के प्राकृतिक उपचार में मदद मिलती है, जिससे बीमारी से छुटकारा पाकर आपका शरीर पूरी तरह स्‍वस्‍थ हो जाता है। यह एक ऐसा इलाज है जिसमें पूरे शरीर का इलाज किया जा सकता है। आयुर्वेदिक उपचार तथ्‍य पर आधारित होता है, जिसमें अधिकतर समस्‍याएं त्रिदोष में असंतुलन यानी कफ, वात और पित्त के कारण उत्‍पन्‍न होती है।

पार्किंसन रोग के लक्षण

इस रोग के कोई विशेष लक्षण नहीं हैं अलग अलग व्यक्तियों में इसके अलग अलग लक्षण देखने को मिलते हैं, कुछ सामान्य लक्षण हैं
कम्पन
कठोर मांसपेशियां
लिखावट में परिवर्तन
असंतुलन व बिगड़ी हुई मुद्रा
आवाज में बदलाव
कार्य करने की छमता में कमी आना

पार्किंसन रोग के कारण

इस रोग के कोई विशेष कारण नहीं है , परन्तु कुछ कारक निम्न है
बढ़ती उम्र
महिलाओ की तुलना में ये पुरुषों में अधिक पाया जाता हैं
अनुवांशिक कारण
वातावरण व पर्यावरण से सम्बंधित कारण

पार्किंसन रोग के लिए होम्योपैथिक उपचार

Gelsemium Sempervirens 1000 या 1m को शुगर मिल्क पॉवडर के साथ ३ पुड़िया बनवा लें और 10 -10 मिनट के अंतर से ३ बार लें,
5 phos 6x की गोली दिन में ३ बार ।
Avena sativa Q आधे कप पानी में 20 बुँदे, दिन में ३ बार (खाना खाने से पहले )।

पार्किंसन रोग होने पर इन होम्योपैथिक दवाओं का उपयोग कर आप इस रोग को काफी हद तक कण्ट्रोल कर सकते है।

Anemia

एनीमिया

जब किसी कारण से शरीर में खून की मात्रा कम हो जाती है या खून में लाल रक्तकणों की कमी हो जाती है तब रोगी के शरीर में खून की कमी हो जाती है। जब कोई रोगी इस रोग से पीड़ित होता है तो शरीर में खून की कमी के कारण चेहरा पीला या सफेद पड़ जाता है, उसका शरीर कमजोर और पतला हो जाता है, रोगी को भूख नहीं लगती, सिरदर्द रहता है, चक्कर आते हैं, दिल की धड़कन तेज हो जाती है तथा कमजोरी के कारण रोगी कोई कार्य नहीं कर पाता तथा उसे चलने-फिरने में भी कठिनाई होती है। किसी रोग आदि में शरीर से खून निकल जाने पर यह रोग हो जाता है। स्त्रियों में रक्तस्राव या मासिकधर्म के समय खून आने पर भी खून की कमी हो जाती है। यदि किसी रोगी के शरीर में खून का स्वभाविक परिमाण कम हो जाए या खून में लाल कणों की मात्रा कम हो जाए या ठीक प्रकार से शरीर में खून नहीं बन पाता है। ऐसे कारणों से शरीर में खून की कमी हो जाती है जिसे रक्त-स्वल्पता या एनीमिया कहते हैं। हीमोग्लोबीन का कार्य शरीर के विभिन्न भागों में ऑक्सीजन का पहुंचाना है। जब किसी कारण से खून में हीमोग्लोबीन की मात्रा जरूरत से अधिक कम हो जाती है तो उसे एनिमिया कहते हैं।

एनिमिया के कारण
सबसे प्रमुख कारण लौह तत्व वाली चीजों का उचित मात्रा में सेवन न करना।

* किसी भी कारण रक्त में कमी, जैसे-
-शरीर से खून निकलना (दुर्घटना, चोट, घाव आदि में अधिक खून बहना)
– शौच, उल्टी, खांसी के साथ खून का बहना।
– माहवारी में अधिक मात्रा में खून जाना।
* मलेरिया के बाद जिससे लाल रक्त करण नष्ट हो जाते हैं।
* पेट के अल्सर से खून जाना।
* पेट के कीड़ों व परजीवियों के कारण खूनी दस्त लगना।
* बार-बार गर्भ धारण करना।

एनीमिया के लक्षण
* त्वचा का सफेद दिखना।
* कमजोरी एवं बहुत अधिक थकावट।
* जीभ, नाखूनों एवं पलकों के अंदर सफेदी।
* बेहोश होना।
* चक्कर आना- विशेषकर लेटकर एवं बैठकर उठने में।
* हृदयगति का तेज होना।
* सांस फूलना।
* चेहरे एवं पैरों पर सूजन दिखाई देना।

एनीमिया होम्योपैथिक उपचार :
Bio combination-1 की 4 tablet, दिन में 3 बार साथ ही ferrum Met 3x, की 2 tablet, दिन में तीन बार
Biofungin 5ml, दिन में तीन बार बड़ों के लिए, 2.5 ml, दिन में तीन बार बच्चो के लिए
Ferrumsip, 5ml दिन में तीन बार बड़ों के लिए, 2.5 ml, दिन में तीन बार बच्चो के लिए

खून की कमी होने पर रोगी को विटामिन बी-12 युक्त आहार लेना चाहिए, हरी सब्जियां, अखरोट, किशमिश, स्ट्राबेरी, अण्डा, गेहूं, खजूर, दूध और दूध से बनी चीजें लेना चाहिए। कच्ची सब्जियों का रस, पालक, गाजर, मूली आदि का सेवन करना एनीमिया रोग में अधिक लाभकारी होता है। चाय, कॉफी, ठण्डे पेय आदि का सेवन करना हानिकारक होता है। मासिक धर्म अधिक मात्रा में आना। लौहतत्व युक्त दवाइयां लेने से उल्टी, खून मिला हुआ दस्त, थकान आदि उत्पन्न होता है। शीरा रक्तकणों को शक्तिशाली बनाता है।

Homeopathic Treatment for Jaundice

पीलिया रोग में रोगी के शरीर की त्वचा पीली हो जाती है, आंखों के अन्दर का सफेद भाग तक भी पीला हो जाता है।
आंखों और रोगी की त्वचा से पता चलता है कि उसे पीलिया हुआ है। ये पीलापन खून में मौजूद बिलरूबिन की मौजूदगी के कारण होता है। ये तत्व लाल रक्त कोशिकाओं के नष्ट होने से बनता है। लक्षण- पीलिया रोग के लक्षणों में रोगी की त्वचा, आंखे, नाखून पीले रंग के हो जाते हैं। रोगी पेशाब करता है तो वह भी बिल्कुल पीले रंग का आता है। यह लक्षण नन्हें-नन्हें बच्चों से लेकर 80 साल तक के बूढ़ों में उत्पन्न हो सकता है।

पीलिया के कारण :
पीलिया के कई कारण है, जिनमे से कुछ प्रमुख कारण हैं :
बाजार की गन्दी चीजें खाना
किसी बीमार व्यक्ति का झूठा खाना व पिने से
खून की कमी होने से
लिवर की कमजोरी से

पीलिया के लक्षण :

आंखें पिली पढ़ जाती हैं
चेहरे के साथ शरीर भी पीला-पीला हो जाता हैं
नाख़ून पर पीलापन आ जाता हैं
भूख नहीं लगती हैं साथ ही उल्टियां होती हैं
बुखार व पेट में दर्द भी होता हैं
पेशाब हलके गहरे रंग की आने लगती हैं आदि यह सभी पीलिया रोग के लक्षण हैं.
हाथों में खुजली चलना
बिलिरुबिन का स्तर खून में बढ़ने से, त्वचा, नाखून और आंख का सफेद हिस्सा तेजी से पीला होने लगता है।
लिवर की किसी भी अन्य परेशानी की ही तरह, पीलिया में भी स्पष्ट तौर पर लिवर में तकलीफ होती है। एक तरह से असुविधाजनक खुजली होती है।
अक्सर फ्लू-जैसे लक्षण विकसित होते हैं और मरीज को ठंड लगने के साथ ही या उसके बिना भी बुखार चढ़ने लगता है।

पीलिया का होम्योपैथिक उपचार :
Hepatica 6ch , 2 बुँदे , दिन में 3 बार ( 2 बुँदे सवेरे,2 बुँदे दिन में,2 बुँदे शाम को ) सात दिन के तक लें
Liv-Card, को आधे ढक्कन , दिन में तीन बार, खाने से पहले
Liv-Card tablet, 4 गोली , दिन में तीन बार
इन दवाओं के साथ , पीलिया रोग में रोजाना गन्ने का रस पीना बहुत ही लाभकारी रहता है क्योंकि गन्ने के रस को पीलिया रोग का बहुत बड़ा दुश्मन माना जाता है। पीलिया के रोगी को रोजाना ताजी सब्जियों का 2-3 गिलास रस पीना चाहिए। रोगी को, दूध, पनीर और मांसाहारी चीजों का सेवन नहीं कराना चाहिए। पीलिया के रोगी को शराब नहीं पीनी चाहिए। रोगी को बहुत ज्यादा मात्रा में ठण्डा पानी पीना चाहिए। गुनगुना पानी का सेवन करें ।

Homeopathic Treatment for Worms

पेट के कीड़े
पेट में कीड़ें होने पर रोगी के पेट में दर्द होता है बेचैनी होती है, गुदा के आस-पास के भाग में खुजली होती है। अतिसार तो कभी कब्ज की समस्या बनी रहती है। शरीर का वजन धीरे-धीरे घटने लगता है। स्वभाव भी चिड़चिड़ा हो जाता है तथा जी मिचलाता है। पाकाशय तथा आंतों में तीन प्रकार के कीड़ें होते हैं- छोटी-छोटी सूत की तरह के कीड़ें (स्माल थीड वोर्मस) गोल लम्बी केंचुए की तरह के कीड़ें (लोंग राउण्ड वोर्मस) खूब लम्बे फीते की तरह के कीड़ें (टेप वोर्मस) छोटी-छोटी सूत की तरह के कीड़ें :- ये कीड़ें कई सारे एक साथ जमा होकर मलद्वार के पास रहते हैं। इनकी लम्बाई एक चौथाई इंच से एक इंच होती है। ये कभी मूलनली या योनि के द्वार में भी चले जाते हैं जिसके कारण से इन स्थानों में खुजली होती है तथा जलन होती है और धातु निकलता है।
ये कीड़ें यदि किसी रोगी में हो तो उसमें इस प्रकार के लक्षण दिखाई पड़ते हैं-
नाक का अगला भाग या गुदाद्वार में खुजली होती है, सांस लेने और छोड़ने पर बदबू आती है, मलत्याग करने पर अधिक परेशानी होती है, गुदाद्वार में बराबर खुजली होती रहती है, नींद न आना, नींद में दांत कड़मड़ाना आदि।
गोल लम्बी केंचुए की तरह के कीड़ें :- ये कीड़ें छोटी आंत में रहते हैं, ये देखने में सफेद होते हैं तथा इनकी लम्बाई चार से 12 इंच तक होती है। ये कभी पाकस्थली की राह में मुंह में आकर उल्टी के साथ बाहर निकल आते हैं। ये कभी-कभी मलत्याग करने पर मल के साथ भी निकल आते हैं। ये कीड़ें यदि किसी रोगी के शरीर में हैं तो उसमें इस प्रकार के लक्षण दिखाई पड़ते हैं- पेट फूलना और पेट में बहुत दर्द, दांत कड़मड़ाना, नींद में एकाएक चीख पड़ना, नाक के अगले भाग और गुदा में खुजली होना, पेट कड़ा और गर्म महसूस होना, शरीर दुबला तथा पतला, चेहरा पीला, आंव-मिला मल होना, आंखों की पुतली फैलना, चेहरा पीला पड़ जाना, कभी बहुत भूख, कभी अरुचि, सांस से बदबू आना, बेहोशी छाना, जी मिचलाना तथा मुंह में बराबर पानी भर आना आदि।
खूब लम्बे फीते की तरह के कीडें :- ये सफेद, चिपटे, गांठ-गाठं दार होते हैं, इनकी लम्बाई 30 फीट से 200 फीट तक होता है, ये कीड़ें भी छोटी आंत में रहते हैं। ये मनुष्य के शरीर में एक से ज्यादा नहीं रहते हैं। मल के साथ इन कीड़ों का कुछ अंश टुकड़े-टुकड़े में होकर निकलता है।
हुक वर्म (अंकुश कृमि) :- ये कृमि बड़ी आंत में पाये जाते हैं और इनके कारण रोगी को एनीमिया हो जाया करता है, तलवों में खुजली के साथ उद्भद निकलना और चिड़चिड़ापन होना आदि।
टेप वर्म (फीता कृमि ) ये भी ज्यादातर आंतों में पाए जाते हैं और दस मीटर तक लम्बे होते हैं। इन कीड़ों के प्रकोप के कारण से कमजोरी थकावट, ज्वर और अंधापन होने के लक्षण प्रकट हो सकते हैं।
एस्केरस (गोल कृमि) :- जब ये कीड़ें मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं तो रोगी की आवाज में सांय-सांय की ध्वनि आने लगती है। खांसी ज्वर, पाकाशय में दर्द होना तथा सांस लेने में दिक्कत आना आदि लक्षण इन कीड़ों के द्वारा हो जाते हैं।
थ्रेड वर्म (सूत कृमि) :- इन कृमि के कारण से गुदा में खुजली होती है, अधिकतर रात के समय में खुजली होती है, खांसी भी हो जाती है, सांस के साथ सांय-सांय की आवाज, अतिसार, मलद्वार में खुजली आदि लक्षण इनके द्वारा उत्पन्न हो सकते हैं।
जियार्डिया :- इन कृमि के कारण से रोगी को दस्त लग जाते हैं, पेट फूल जाता है, चिकना और बदबूदार मल आना, शरीर का वजन घटना आदि।
पेट में कीड़े होने के कारण :-
दूषित पानी व भोजन का सेवन करने, अधपका मांस खाने तथा अस्वस्थ पालतू पशुओं के साथ खेलने या रहने से पेट तथा आंतों में कई प्रकार के कीड़ें हो जाते हैं।
पेट की सफाई ठीक प्रकार से न होने या पाचन सम्बंधी गड़बड़ियां होने से पेट में कीड़ें हो जाते हैं ।
कान या नाक से स्राव होने की वजह से उसमें मक्खी घुसकर अंडा दे देती है यही अंडे फूटकर नाक या कान में कीड़ा पैदा कर देते है।
कच्चे फल-मूल, ज्यादा पके केले, सड़ी मछली, अधिक मीठा खाना, गंदे पदार्थों का भोजन में प्रयोग करने के कारणों से पेट में कीड़ें हो जाते हैं।
पेट के कीड़े होने के लक्षण
खाने का न पच पाना
दस्त का होना
कब्ज़ की शिकायत
खाना खाने के तुरन्त बाद मल का आ जाना
मल में बलगम तथा खून आना
पेट में दर्द तथा जलन
वजन और भूख समस्या
मांसपेशियों और जोड़ों की शिकायत
गैस और सूजन का अनुभव
बवासीर
शारीरिक कमजोरी
त्वचा सम्बंधित रोग और एलर्जी
शरीर में खुजली, सूजन आदि लक्षण पेट के कीड़े होने में देखे गए हैं ।
पेट के कीडों का होम्योपैथिक उपचार
Cina 1m की 5 बुँदे 10-10 मिनट के अंतर से, ३ बार , इस दवा को सप्ताह में एक बार लें
Helmisol drops, की २० बुँदे दिन में ३ बार आधे कप पानी के साथ मिला कर लें
R 56, २० बुँदे दिन में ३ बार लें
इन दवाओं को सही मात्रा व समय पर लेने से आपको पेट के कीड़ों से छुटकारा मिलेगा, साथ ही खाने में संतुलित आहार लें, खूब पानी पिए।

Varicose Veins

वैरिकोज वेन्‍स

पैर की नसों में मौजूद वाल्‍व, पैरों से रक्त नीचे से ऊपर हृदय की ओर ले जाने में मदद करते है। लेकिन इन वॉल्‍व के खराब होने पर रक्त ऊपर की ओर सही तरीके से नहीं चढ़ पाता और पैरों में ही जमा होता जाता है। इससे पैरों की नसें कमजोर होकर फैलने लगती हैं या फिर मुड़ जाती हैं, इसे वैरिकोज वेन्‍स की समस्‍या कहते हैं। इससे पैरों में दर्द, सूजन, बेचैनी, खुजली, भारीपन, थकान या छाले जैसी समस्याएं शुरू हो जाती हैं। यूएस डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ एंड ह्यूमन सर्विस के अनुसार, वैरिकाज वेन्‍स 25 प्रतिशत महिलाओं और 10 प्रतिशत पुरुषों को प्रभावित करता हैं।

वेरिकोज वेन्स के लक्षण
नसों में सूजन
पैरो में भारीपन
खुजली
पैरो में दर्द
नसों का रंग लाल या नीला पड़ना
नसों से रक्तस्राव

वेरिकोज वैन्स के कारण

वैरिकोज वैन्स के वैसे तो कई कारण है जिनमे से कुछ मुख्य कारण है :
गर्भवस्ता के दौरान ये समस्या होना आम बात है
व्यायाम की कमी के कारण
मोटापे से पीड़ित व्यक्ति में ये समस्या देखने को मिलती है
बढ़ती उम्र जिस कारण नसों की लवचीलता काम हो जाती है
अनुवांशिकता भी वैरिकोज वेन्स का एक सामान्य कारण है

वैरीकोज वेन्स का होम्योपैथिक उपचार

Ruta g 30 की 5 बुँदे दिन में ३ बार लें,
Adel 44 की 20 बुँदे, दिन में ३ बार लें
Blooume 32 की 20 बुँदे, दिन में ३ बार लें

बताई गयी दवाओं से आपको वेरिकोज वेन्स में बेहद लाभ मिलेगा साथ ही व्यायाम करें और पर्याप्त मात्रा में पानी पिए।

Dog Bite

कुत्ते का काटना

आज-कल रोड पे आवारा कुत्तो का कहर देखने को मिलता है चलते चलते कब आपके पीछे कुत्ते पड़ जाये आप नहीं जान सकते कुत्ते के काटने का विष खतरनाक होता है। कुत्ते के काटने से कई तरह के संक्रमक रोग लग सकते हैं जिसमें इंसान पागल तक हो जाता है।
कुत्ते के काटने पर आप कुछ होम्योपैथिक दवाओं का इस्तेमाल कर, कुत्ते के काटने के संक्रमण से बच सकते है

कुत्तों के काटने के कारण
कुत्तों के काटने का वैसे तो कोई मुख्य कारण नहीं है ,बड़ों की तुलना में 5 से 9 साल के बच्चों को कुत्ते अधिक काटते हैं. अधिकतर उन घरों के ही बच्चों को कुत्ते काटते हैं जिन घरों में कुत्ते को पाला जाता हैं. ऐसा इसलिए होता हैं क्यूंकि अक्सर छोटे बच्चे खेल – खेल में उनकों ज्यादा परेशान कर देते हैं या चिढ़ाते , उनकी पूंछ को, कानों को बार – बार खीचते हैंऔर वो उन्हें काट लेते हैं. घर के पालतू कुत्ते बड़ों को या बच्चों को न पहचानने के कारण तथा घर की रखवाली करने के लिए काट लेते हैं. गलियों में घुमने वाले कुत्ते इसलिए काट लेते हैं क्यूंकि या तो वो पागल होते हैं या वो घायल होते हैं या राह चलते लोग उन्हें परेशान करने लगते है

कुत्ते के काटने के लक्षण
कुत्ते के काटने पर शरीर के जिस भाग पर कुत्ते ने कटा है. वो भाग पूरा लाल हो जाता हैं, कुत्ते के दांत बहुत ही नुकीले होते हैं जिससे उनके काटते ही खून निकलने लगता हैं तथा दर्द होता हैं।
जहाँ कुत्ते ने कटा हो वहां घाव हो जाता है।
जानते है कुत्ते के काटने के लिए होम्योपैथिक उपचार
कभी लापवाही के चलते या जाने अनजाने में या किसी कारण कुत्ता कभी किसी को काट ले तो होमियोपैथी की कुछ दवाओं का उपयोग कर आप आराम पा सकते है।
Hydrophobium , की २-२ बुँदे, दिन में ३-६ बार तक लें
और अगर कुत्ते के काटने में घाव हो गया हो तो ,Calendula officinalis Q को रुई से उस जगह पर लगाए
कुत्ते के काटने पर इन दवाओं को लेने से आपको जल्द आराम मिलेगा।

Fever Treatment

बुखार

जब शरीर का ताप बढ़ने को बुखार कहते हैं। शरीर के किसी भी अंश में जलन होने या किसी तरह का जहर खून के साथ मिल जाने पर बुखार हो जाता है ।
बुखार ३ तरह का बताया गया हैं :
जो बुखार एक बार ठीक होकर दुबारा से आ जाता है तो उसे सविराम ज्वर या विषम ज्वर कहते हैं।
जो ज्वर हमेशा बना रहता है और ठीक नहीं होता है उसे अविराम ज्वर कहते हैं।
जो बुखार घटते-घटते फिर से बढ़ जाता है, उसे स्वल्प-विराम ज्वर कहते हैं।

बुखार आने से हमे पता चलता हैं की हमारे शरीर के अंदर किसी प्रकार का संक्रमण हो गया है। शरीर का सामान्य तापक्रम 98.6 फारेनहाइट या 36 डिग्री सेंटीग्रेड होता है। शरीर का तापमान मुंह में या बगल में थर्मामीटर लगाकर नापा जा सकता है, लेकिन इन दोनों स्थानों के तापमान में लगभग एक डिग्री फारेनाहाइट का अंतर होता है।

कारण :-

बहुत ज्यादा परिश्रम करना, मासिकधर्म तथा डिम्ब क्षरण के समय, उच्चतापमान के वातावरण से, बैक्टीरिया, वायरस या फंगस का संक्रमण शरीर के किसी भाग में हो जाना आदि कारणों से बुखार होता है। बुखार कई प्रकार के रोगों के कारण भी होता है जैसे- कैंसर, आमवात, हारमोन में वृद्धि होना, थायराइड रोग, लू, चोटलगना आदि।

बुखार होने के लक्षण :-

बुखार होने का मुख्य लक्षण शरीर का ताप बढ़ना है परन्तु कई और लक्षण है, जिनसे आप बुखार का पता लगा सकते है :

मांसपेशियों में दर्द होना।
शरीर में कमजोरी महसूस होना।
सिर में दर्द होना।
कमर में दर्द होना।
सर्दी लगना
बेहोशीपन महसूस होना या कभी-कभी बेहोश हो जाना।
प्रलाप (बेहोशी में बुदबुदाना)।
त्वचा पर कई प्रकार की फुंसियां निकलना।
शरीर से पसीना आना।

बुखार के लिए होम्योपैथिक दवाइयां :
बुखार होने पर मरीज को होमियोपैथी की कुछ दवाये दे कर मरीज को ठीक किया जा सकता है। तो चलिए जानते है बुखार के लिए होम्योपैथिक दवाइयां :

Antipyrinum 30ch 2 बुँदे दिन में , तीन से छः बार,
अगले दिन से Acetanilidum की 2 बुँदे दिन में , तीन से छः बार,
Bio-Combination 11, 4 गोली दिन में , तीन बार (4 गोली सवेरे , 4 गोली दिन में, 4 गोली रात को )
बुखार से पीड़ित रोगी को शारीरिक और मानसिक श्रम से बचना चाहिए।
शरीर में पानी की कमी न हो इसके लिए तरल पदार्थों का सेवन करना चाहिए। रोगी को कार्बोनिक पेय, ठण्डे रस व फल जैसे ककड़ी, खीरे और केले का सेवन नहीं करना चाहिए।बुखार को कम करने के लिए माथे पर ठण्डी पटि्टयां लगानी चाहिए।अधिक बुखार होने पर पूरे शरीर को गीले कपड़े में लपेटने से लाभ मिलता है।बुखार से पीड़ित रोगी को हल्का और पौष्टिक भोजन करना चाहिए जिसमें सब्जियों का रस और सूप को जरूर शामिल करें ।

Face Warts

मस्से

मस्सा वायरस से प्रेरित स्किन ग्रोथ का प्रकार हैं। त्वचा पर पेपीलोमा वायरस के कारण छोटे खुरदरे कठोर गोल पिण्ड बन जाते हैं जिसे मस्सा कहते हैं। ये मस्से कई प्रकार के होते हैं। कुछ मस्से ऐसे होते हैं जो उत्पन्न होकर अपने आप एकाएक समाप्त हो जाते हैं। जब कोई रोगी मस्से को काट या फोड़ देता है तो उस मस्से का वायरस शरीर के अन्य स्थानों पर जाकर वहां भी मस्से बना देते हैं। कभी-कभी मस्से का वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति की त्वचा पर आकर उसकी त्वचा पर भी मस्से बना देते हैं।

मस्से के प्रकार
मस्से कई प्रकार के होते है, जिनमे से कुछ सामन्य प्रकार है :
सामान्‍य मस्‍सा, प्‍लांटार वार्ट्स,फ्लैट वार्ट्स, फिलिफ्रोम वार्ट्स, पेरींगुअल वार्ट्स, जननांग मस्‍सा

मस्सॊ का मुख्य कारण मानव (ह्यूमन) पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) होता है।

मस्सों के लक्षण :-
मस्सो के वैसे तो कई लक्षण देखे गए है, जिनमे से कुछ खास लक्षण है :
मांसपेशियों की वृद्धि से छोटा बम्प्स
हाथ-पैरों पर सफेद व गुलाबी रंग के मस्से हो जाते हैं जो कठोर व खुरदरे होते हैं।
मस्से छूने पर खुरदुरे लगते हैं।
कभी-कभी मस्से समूहों में उत्पन्न होते हैं जो अधिकतर भी गर्दन, चेहरे एवं छाती पर होते हैं।
कुछ लोगों के अंगुलियों व पैरों के नाखूनों के किनारों पर भी मस्से उभरे आते हैं।

मस्सों के लिए होम्योपैथिक उपचार

होमियोपैथी में मस्सों का कुशल उपचार संभव है तो चलिए जानते है मस्सों के लिए कुछ होम्योपैथिक दवाएं :

Causticum 200ch 2 2 बुँदे सवेरे
Acidum Nitricum 200, 2 बुँदे शाम को
Berberis Aquifolium Q, 10 बुँदे दिन में तीन बार , (10 बुँदे सवेरे , 10 बुँदे दिन में, 10 बुँदे शाम को )

इन दवाओं के उपयोग के साथ साथ, कुछ बाते ध्यान में रखे जैसे :
हाथ को नियमित रूप से धोते रहे , मस्से को ब्लेड या किसी भी चीज़ से छेड़े या कटे नहीं ।

Hiccups Treatment in Homeopathy

हिचकी का रोग अपने आप में कोई बहुत बड़ा रोग नहीं है लेकिन फिर भी हिचकी किसी भी इंसान को बहुत परेशान कर सकती है जैसे अगर भोजन करते समय हिचकी आना शुरू हो जाती है तो व्यक्ति का भोजन करना मुश्किल हो जाता है। छाती और पेट की मांसेपेशियां सिकुड़ने के कारण फेफड़े तेजी से हवा खिंचने लगते हैं और सांस लेने में दिक्कत होने लगती है, जिस कारण हिचकियां शुरू हो जाती है। कई बार गर्म खाने के एकदम बाद कुछ ठंडा खाने से भी हिचकी आना शुरू हो जाती हैं। हिचकी वैसे तो कुछ देर बाद अपने आप ही बंद हो जाती है लेकिन फिर भी अगर ये रोग पुराना हो जाए तो काफी भयंकर हो सकता है इसलिए समय पर ही इसकी चिकित्सा कर लेनी चाहिए।

कारण- हिचकी आने के रोग का अभी तक सही कारण तो पता नहीं चल पाया है
लेकिन हिचकी के कुछ देखे गए कारण है
ये अक्सर ज्यादा भोजन करने से,
शराब पीने से,
गुर्दें के खराब हो जाने से,
मधुमेह (डायबिटीज), आदि के कारण हो जाता है।

जानते है हिचकी के लिए होम्योपैथिक उपचार

Nux Vomica 30 की 5 बुँदे, रात को लें
Ginseng 30, की 2 बुँदे दिन में 3 बार लें (2 बुँदे सवेरे , 2 बुँदे दिन में ,2 बुँदे शाम को )
Kali Phosphoricum 6x की 4 गोली, दिन में तीन बार ( 4 गोली सवेरे, 4 गोली दिन में, 4 गोली शाम को )

हिचकी होने पर बताई गयी दवाओं को सही मात्रा में और सही समय लेने से हिचकी से आराम मिलता हैं । इसके साथ ही हिचकी आने पर एक गिलास पानी में शक्कर मिलाकर पीना चाहिए। हिचकी आने पर सांस को रोककर खाली घूंट निगल जाना चाहिए। हिचकी आने वाले व्यक्ति की कमर पर अचानक एक थपकी लगाकर उस पर ठण्डा पानी गिराकर उसको चौंका दें। बच्चों को हिचकी आने पर थोड़ा दूध या पानी पिलाने से हिचकी तुरंत ही बंद हो जाती है।

Epilepsy Treatment in Homeopathy

अपस्मार या मिर्गी एक तंत्रिकातंत्रीय विकार है, जिसमें रोगी को बार-बार दौरे पड़ते है। मस्तिष्क में किसी गड़बड़ी के कारण बार-बार दौरे पड़ने की समस्या हो जाती है। दौरे के समय व्यक्ति का दिमागी संतुलन पूरी तरह से गड़बड़ा जाता है और उसका शरीर लड़खड़ाने लगता है। इसका प्रभाव शरीर के किसी एक हिस्से पर देखने को मिल सकता है, जैसे चेहरे, हाथ या पैर पर। इन दौरों में तरह-तरह के लक्षण होते हैं, जैसे कि बेहोशी आना, गिर पड़ना, हाथ-पांव में झटके आना। मिर्गी किसी एक बीमारी का नाम नहीं है। अनेक बीमारियों में मिर्गी जैसे दौरे आ सकते हैं। मिर्गी के सभी मरीज एक जैसे भी नहीं होते। किसी की बीमारी मध्यम होती है, किसी की तेज। यह एक आम बीमारी है जो लगभग सौ लोगों में से एक को होती है। इनमें से आधों के दौरे रूके होते हैं और शेष आधों में दौरे आते हैं,जबकि उपचार जारी रहता है।

मिर्गी के कारण
मिर्गी के कई कारण हैं, जिनमे से कुछ कारण है :
ब्रेन ट्यूमर।
न्यूरोलॉजिकल डिज़ीज जैसे अल्जाइमर रोग।
जन्म के समय मस्तिष्क में पूर्ण रूप से ऑक्सिजन का आवागमन न होने पर।
दिमागी बुखार और इन्सेफेलाइटिस के इंफेक्शन से मस्तिष्क पर पड़ता है प्रभाव।
ब्रेन स्ट्रोक होने पर ब्लड वेसल्स को क्षति पहुँचती है।
सिर पर किसी प्रकार का चोट लगने के कारण।
जेनेटिक कंडिशन।
कार्बन मोनोऑक्साइड के विषाक्तता के कारण भी मिर्गी का रोग होता है।
ड्रग एडिक्शन और एन्टीडिप्रेसेन्ट के ज्यादा इस्तेमाल होने पर भी मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ सकता है।

मिर्गी के लक्षण
मिर्गी के मरीज में कई अलग अलग लक्षण देखे गए है , परन्तु कुछ आम लक्षण जो मिर्गी के मरीज में देखे जाते है वो है :
जीभ काटने और असंयम की प्रवृत्ति।
अचानक हाथ,पैर और चेहरे के मांसपेशियों में खिंचाव उत्पन्न होने लगता है।
मरीज़ या तो पूर्ण रूप से बेहोश हो जाता है या आंशिक रूप से मुर्छित होता है।
पेट में गड़बड़ी।
सर और आंख की पुतलियों में लगातार मूवमेंट होने लगता है।
मिर्गी के दौरे के बाद मरीज़ उलझन में होता है, नींद से बोझिल और थका हुआ महसूस करता है।

मिर्गी का होम्योपैथिक उपचार
मिर्गी के लिए होम्योपैथिक में उपचार उपलब्ध है, जानते है मिर्गी के लिए होम्योपैथिक दवाएं :
Aethusa 3, 2 बुँदे, दिन में तीन बार लें (2 बुँदे सवेरे, 2 बुँदे दिन में, 2 बुँदे रात को)
R 33 की 20 बुँदे , दिन में ३ बार लें , (20 बुँदे सवेरे, 20 बुँदे दिन में, 20 बुँदे रात को)
Bio-Combination 24 की 4 गोली, दिन में ३ बार लें, (4 गोली सवेरे, 4 गोली दिन में, 4 गोली रात को)
बताई गयी दवा को सही मात्रा और सही समय पर लें, आपको मिर्गी में फर्क जरूर महसूस होगा साथ ही पर्याप्त नींद और एक ही समय में सोने की आदत का पालन करें , तनाव से दूर रहे , व्यायाम करें और संतुलित आहार लें ।