होमियोपैथी पर विशेष जानकारी

होमियोपैथी के जनक महात्मा हैनिमन ने सीधे तौर पर बताया है की रोगों का जनक  सोरा,   सिफिलिस व साइकोसिस है. आयुर्वेद में तीन दोष वात, पित्त और कफ को रोगों का मुख्य जनक माना गया है. होमियोपैथी में सही औषधि निर्वाचन के लिए सबसे महत्वपूर्ण है की कोई भी रोगी में कौन सा दोष छुपा है , जिसके कारण उसको पूरी तरह से ठीक होने में बाधा आ रही है , परन्तु मात्र यह जान लेना की व्यक्ति कौन से दोष से जुडा है यह जान लेना काफी नही है, रोगी पूर्ण रूप से लाभार्थी तभी होगा जब वह व्यापक लक्षण को भी अभीव्यक्त करता है, अगर ऐसा न हो तो दवाओ से तत्कालीन लाभ भले ही मिल जाये परन्तु पूर्ण लाभ ले पाना संभव नही है.

पर क्या आप जानते है की व्यापक लक्षण क्या होते है?

ये वो है जो समूची जीवनी शक्ति को , अर्थात रोगी के सम्पूर्ण शरीर की समय, मौसम , सर्दी- गर्मी , खुली बंद हवा, दवाब, चलना फिरना, गति आराम, शब्द, स्पर्श तथा अन्य भौतिक परिस्थियो के प्रति जो प्रतिक्रिया  हो, उसको अभिव्यक्त करें.

होमियोपैथ स्पष्ट जानता है की कुछ दवाए ठंडी होती है , कुछ गर्म होती है और कुछ दवाए गर्म ठंडी दोनों. कुछ दवाए बरसात में यानि नम मौसम में रोग में वृद्धि करती है .

हम देखते है की होमियोपैथी ने त्रिदोष के सिद्दान्थ को दुसरे शब्दों में स्वीकार किया हुआ है , इसलिए हम ये कह सकते है की होमियोपैथी कुछ और बड़ा सिद्धन्त है. आयुर्वेदिक दृष्टी से दोष का निदान हो जाने पर उससे सही होम्योपैथिक दवा ढूढने में थोड़ी मदद ही मिलती है. कुशल होमियोपैथ इस ज्ञान से उपयोगी सही सटीक दवाओ का चयन कर सकता है.